प्रार्थना
हे ईश्वर
हमें अर्थपूर्ण संघर्ष दो
और उचित उदासी
हमें सदैव लंपट खुशियों से बचाना
और मूर्खतापूर्ण करुणा से
अपने होने का कोई सबूत न देना
जबकि हमारे पास है
तुम्हारे नहीं होने का
अदृश्य रहना और रहस्य
हे ईश्वर
हमारी कामनाएं
कभी पूरी न सुनना
हमारी प्रार्थनाएं
सुनना उतनी ही
जिसमें तुम पर विश्वास बना रहे
तुम हो सके तो
तलवार की धार पर ज़ंग बनकर
उसे नाकाम कर देना
आग का नीलापन
मिट्टी की स्मृति बनना
तुम हर बार
मेरी शक्कर पर चींटी बनना प्रभु
नींद
नींद एक मकान है
लौटता हूँ जिसमें बेतरह
दुनिया भर के दफ़्तर निपटा कर
एक पवित्र कोना है
जिसमें जाते ही
ज़रूरत नहीं
किसी आत्मस्वीकृति की
नींद की दहलीज पार करने से पहले
डूबता हूँ तमाम वर्जनाओं में
तथाकथित पापकर्म
अर्थहीन गतिविधियां
सुखवाद के रसास्वादन
और सुबह से शुरू कर सकने वाले
नए जीवन के संकल्प
नींद सब निगल लेती है
मेरे पाप-पुण्य
संकोच, पश्चाताप, अशुचिता
और बाक़ी सभी स्पंदनों को
नींद एक गहरा कुआं है
जो वापिस नहीं आने देता
फेंके गए पत्थरों की आवाज़।
जीवन में
जागने का हर प्रयास
नींद से होकर गुज़रता है।
कभी - कभी
कभी कभी होता है
कि फेंकता हूँ पत्थर
तो उछलता हुआ जाता है तालाब के बीच तक
मूंगफली देता हूँ
और दौड़ती हुई आती है एक गिलहरी
तन्मय होकर एक-एक फली खाती है
निर्भीक
खींचता हूँ नन्हे बच्चे के गाल
और वह मुस्कुरा देता है
लेटता हूँ
नींद मेरी रगों में फैलती जाती है
जैसे कैनवास पर चटख रंग
चाय बन जाती है स्वादिष्ट
रेडियो चालू होते ही गूंजता है
भीमसेन जोशी का अभंग
देर तक सोई रहती है माँ
सोमवार तक खिंचा चला आता है रविवार
बग़ैर आलस और साज़िश के
कभी कभी जिए चले जाना
लगता है हसीन
कभी-कभी जब थकी होती है वो
पढ़ रही होती है उपन्यास का उबाऊ हिस्सा
बेसाख़्ता मुंह से निकल जाता है मेरे
बहुत प्यार करता हूँ तुमसे
चश्मे को
नाक की फुनंग पर जमाकर
कहती है वो
"हां! मैं भी"
कभी-कभी
कवि के बारे में :
निशांत कौशिक (जन्म - 1991 : जबलपुर, मध्य प्रदेश)
— जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली से तुर्की भाषा में स्नातक
—मुंबई विश्वविद्यालय से फ़ारसी में डिप्लोमा.
—मूल तुर्की, उर्दू, अज़रबैजानी और अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद पत्रिकाओं में प्रकाशित
—विश्व साहित्य पर टिप्पणी, डायरी, अनुवाद, यात्रा एवं कविता लेखन में रूचि
फ़िलहाल पुणे में नौकरी एवं रिहाइश