कवि साहिब
मैं पहली पंक्ति लिखता हूँ
और डर जाता हूँ राजा के सिपाहियों से
पंक्ति काट देता हूँ
मैं दूसरी पंक्ति लिखता हूँ
और डर जाता हूँ बाग़ी गुरिल्लों से
पंक्ति काट देता हूँ
मैंने अपने प्राणों की ख़ातिर
अपनी हज़ारों पंक्तियों को
ऐसे ही क़त्ल किया है
उन पंक्तियों की आत्माएँ
अक्सर मेरे आसपास ही रहती हैं
और मुझे कहती हैं :
कवि साहिब
कवि हैं या कविता के क़ातिल हैं आप?
सुने मुंसिफ़ बहुत इंसाफ़ के क़ातिल
बड़े धर्म के रखवाले
ख़ुद धर्म की पवित्र आत्मा को
क़त्ल करते भी सुने थे
सिर्फ़ यही सुनना बाक़ी था
कि हमारे वक़्त में ख़ौफ़ के मारे
कवि भी बन गए
कविता के हत्यारे।
मेरी सूली बनाएँगे
या रबाब
जनाब
याकि मैं यूँही खड़ा रहूँ ताउम्र
करता रहूँ पत्तों पर
मौसमों का हिसाब-किताब
जनाब
कोई जवाब
दो वृक्षों की बातचीत
मुझे क्या पता-मुझे कहाँ भेद
मैं तो ख़ुद एक वृक्ष हूँ तुम्हारी तरह
तुम ऐसा करो
आज का अख़बार देखो
अख़बार में कुछ नहीं
झड़े हुए पत्ते हैं
फिर कोई किताब देखो
किताबों में बीज हैं
तो फिर सोचो
सोच में ज़ख्म हैं
दाँतों के निशान हैं
राहगीरों के पदचिह्न हैं
या मेरे नाख़ून
जो मैंने बचने के लिए
धरती के सीने में घोंप दिए हैं
सोचो, सोचो और सोचो
सोच में क़ैद है
सोच में ख़ौफ़ है
लगता है धरती से बँधा हुआ हूँ
जाओ फिर टूट जाओ
टूटकर क्या होगा
वृक्ष नहीं तो राख सही
राख नहीं तो रेत सही
रेत नहीं तो भाप सही
अच्छा फिर चुप हो जाओ
मैं कब बोलता हूँ
यह तो मेरे पत्ते हैं
हवा में डोलते हुए।
एक लफ़्ज़ विदा लिखना
एक लफ़्ज़ विदा लिखना
एक सुलगता सफ़ा लिखना
दुखदायी है नाम तेरा
ख़ुद से जुदा लिखना
सीने में सुलगता है
यह गीत ज़रा लिखना
वरक जल जाएँगे
क़िस्सा न मिरा लिखना
सागर की लहरों पे
मेरे थल का पता लिखना
एक ज़र्द सफ़े पर
कोई हर्फ़ हरा लिखना
मरमर के बुतों को
आख़िर तो हवा लिखना।
हिंदी में अनुवाद : चमनलाल
सुरजीत पातर पंजाबी भाषा के एक जाने-माने कवि थे। उनका जन्म जालंधर जिले के पातर गांव में 14 जनवरी, 1945 हुआ था। पातर की कविताओं में हमारे समय के मनुष्य ने, उसकी इच्छा, आकांक्षा और संघर्षों, बहुत सी भावनाओं ने वाणी पायी है। उन्होंने हमारे समय के आम मनुष्य की, चाहे वह किसान हो या मजदूर के कहे-अनकहे को कविता का रूप दिया।
Surjit Patar was a renowned poet of the Punjabi language, born on January 14, 1945, in the village of Patar in Jalandhar district. His poems have given voice to the human spirit of our times, capturing the desires, aspirations, and struggles of people. Through his work, he poetically expressed both the spoken and unspoken experiences of everyday individuals, whether farmers or laborers. # Surjeet Patar kavita