top of page

ब्लैक शीप, देवेश पथ सारिया

  • poemsindia
  • Feb 28, 2022
  • 2 min read

Updated: Dec 15, 2023



ब्लैक शीप


(1)

ख़ूब कंजूस होते हुए भी उन्होंने मुझे ख़रीदकर दी थी पुस्तक- ‘महाभारत के कुछ आदर्श पात्र’ और वे चाहते थे कि कर्ण मेरा आदर्श न हो कवच कुंडल दान देना नहीं, छीन लेना सीखूं

द्वापर में काम बनता न देख वे मुझे ले गए त्रेता युग में राम के जीवन का ध्येय बताया फिर मेरे चालढाल देखकर चिंता जताई कि ईमानदार होकर मैं जीवन में कुछ नहीं कर पाऊंगाा।


(2)

बड़े सिलसिलेवार ढंग से बतायी थीं उसने क़यामत के दिन होने वाली घटनाएँ मेरी निरपेक्षता को झुकाव मान वह मुझे आग से बचा लेने पर आमादा था और सवाब के तौर पर रखता था उम्मीद कि वह ख़ुद भी हो जाएगा महफूज़

उसके प्रिय अदाकार, गायक, कॉमेडियन सहधर्मी थे सब उसके और वह सख़्त ख़िलाफ़ था बच्चों और बच्चियों के आपस में बात करने के वास्तविकता में ही नहीं, परिकथाओं में भी।


(3)

वे अपनी पत्नी को अमृत पान करा लाए थे और स्वयं एक दूसरे द्रव्य का सेवन करते थे पत्नी बचती फिरती थी उनके मादक स्पर्श से।


(4)

उस कैथोलिक पादरी ने स्वीकारा था कि रूढ़ियों-बेड़ियो से उकताकर हुआ था पुनर्जागरण और जोड़ दिया था तुर्रा यह कि प्रोटेस्टेंट वाकपटु होते हैं बरगला देते हैं भोले-भाले लोगों को!



वे लोकतंत्र को कम जानते थे


वे बहुत पढ़ी-लिखी नहीं थीं ताइवान‘ में काम मिलने की ख़बर उन्हें सुना उनके पैर छू रहा था जब मैं मुझे आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा- “बेटा संभल कर रहना ‘तालिबान’ में!”

जो पढ़े-लिखे मिलते थे खोज ख़बर लेते थे कुछ कुंठित होते थे कुछ ‘तालिबान’ पर अटक जाते थे सैनी किस्मत लाल की ठेली पर खड़े गोलगप्पा गड़पते हुए और ग़लती सुधारे जाने पर बेशर्मी से कहते- “तो काईं बड़ी बात होगी?”

किताबों, अख़बारों, निरक्षरों और शिक्षित बड़बोलों सबके बीच तूती बोलती थी एक फ़सादी शैतान की

एक शांतिप्रिय लोकतंत्र को लोग दरकिनार किए रहते थे!



bottom of page